बिहार का जनादेश और भारतीय राजनीति का उभरता परिदृश्य-हरदीप सिंह पुरी


बिहार की जनता ने एक ऐसा जनादेश दिया है, जिसका महत्व सीटों के गणित से कहीं आगे जाता है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने विधानसभा की 243 सीटों में से 202 सीट पर जीत दर्ज की है, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने अकेले 89 सीटें हासिल की हैं, जो राज्य में पार्टी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। दशकों तक विभिन्न गठबंधनों के तहत बिहार की राजनीति पर अपना दबदबा बनाए रखने के बाद, महागठबंधन अब सिर्फ़ 34 सीटों पर सिमट गया है। 7.4 करोड़ से ज़्यादा पंजीकृत मतदाताओं में से 67.13 प्रतिशत ने मतदान किया। यह चुनाव राज्य के हाल के इतिहास में सबसे कड़े मुक़ाबले वाले चुनावों में से एक सिद्ध हुआ है और चुनाव परिणामों ने वास्तविक लोकतांत्रिक गहराई को रेखांकित किया है।

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वर्षों तक, बिहार पर व्यक्त किये गए विचारों में राज्य को समय के प्रवाह में एक रुका हुआ राज्य मान लिया गया था। चुनावों को जातिगत अंकगणित की कवायद माना जाता था और सामाजिक जनसांख्यिकी को राजनीतिक नतीजों में तब्दील कर दिया जाता था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारतीय राजनीति का परिदृश्य निर्णायक रूप से विकास, समावेश और राज्य क्षमता के रूप में बदल गया है तथा बिहार के मतदाताओं ने इस बदलाव को लेकर पूरी स्पष्टता से जवाब दिया है। 2025 के परिणाम एक ऐसे मतदाता को इंगित करते हैं, जिसकी आकांक्षा बड़ी है और जिसने असुरक्षा व पक्षाघात वाले बिहार तथा बेहतर शासन वाले बिहार के बीच के अंतर को महसूस किया है। कई नागरिकों ने बातचीत में और मतदान के पैटर्न में व्यक्त किया है कि 2024 के आम चुनाव में अपेक्षा से कम समर्थन के बाद यह चुनाव जिम्मेदारी की भावना लेकर आया है। लोगों ने अपने निष्कर्ष निकाले हैं कि वे देश की व्यापक यात्रा में बिहार को कहाँ देखना चाहते हैं।

बेहतर शासन ने इस परिवर्तन को आधार प्रदान किया है। पिछले एक दशक में, बिहार में 55,000 किलोमीटर से अधिक ग्रामीण सड़कों का निर्माण या उन्नयन हुआ है, जो गांवों को बाजारों, स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों से जोड़ती हैं। केंद्रीय योजनाओं और राज्य कार्यक्रमों के संयोजन के माध्यम से लाखों परिवारों को बिजली, पेयजल और सामाजिक सुरक्षा प्राप्त हुई है। सौभाग्य और उससे जुड़ी पहलों के तहत, बिहार में 35 लाख से ज़्यादा घरों का विद्युतीकरण किया गया, जिससे राज्य सार्वभौमिक घरेलू बिजली आपूर्ति के करीब पहुँच गया। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत, बिहार के लिए 57 लाख से ज़्यादा पक्के घर स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें से कई महिलाओं के नाम पर पंजीकृत हैं। ये आँकड़े उन ठोस बदलावों की ओर इशारा करते हैं, जिन्हें लोग देख और अनुभव कर सकते हैं: एक बारहमासी सड़क, एक जलती रहने वाली रोशनी, एक नियमित पेयजल आपूर्ति करने वाला नल तथा एक ऐसा घर, जो सम्मान प्रदान करता हो।

जैसे-जैसे इन सार्वजनिक कल्याण कार्यक्रमों का विस्तार हुआ, पुरानी शक्तियों की पकड़ ढीली होती गयी। बिहार का समाज विविधतापूर्ण और बहुस्तरीय है, फिर भी चुनावी लिहाज़ से यह बहुस्तरीय समाज अपने समुदायों तक सीमित नहीं रहा। विभिन्न समुदायों की महिलाएँ अब सुरक्षा, आवागमन और अवसर को लेकर एक जैसी अपेक्षाएँ रखती हैं। कभी सामाजिक पदानुक्रम के विपरीत छोर पर खड़े परिवारों के युवा अब खुद को एक ही कोचिंग क्लास और श्रम बाज़ार में पाते हैं। उनके रोज़मर्रा के अनुभव उन्हें आकांक्षाओं के एक साझा दायरे में ले आते हैं। उस दायरे में, वे राजनीति से रोज़गार, अवसंरचना, स्थिरता और निष्पक्षता जैसे सवाल पूछते हैं।

इस जनादेश ने वंशवाद-केंद्रित राजनीति पर भी एक स्पष्ट संदेश दिया है। पारिवारिक करिश्मे और विरासत में मिले नेटवर्क पर निर्भर रहने वाली पार्टियों का विधायी दायरा तेज़ी से सिकुड़ रहा है। बिहार ने कई दशकों से ऐसे गठबंधनों को करीब से देखा है और उनकी सीमाओं को समझा है। 2025 के नतीजे बताते हैं कि मतदाता इस बात पर गौर कर रहे हैं कि नेता सरकार में कैसा व्यवहार करते हैं, संकट के समय में उनकी प्रतिक्रिया कैसी होती है, संस्थाओं के साथ कैसे व्यवहार करते हैं और सार्वजनिक संसाधनों का किस रूप में उपयोग करते हैं। व्यापक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में पारिवारिक पृष्ठभूमि मौजूद है, लेकिन वहाँ भी कड़ी मेहनत, संगठनात्मक क्षमता और सेवा के रिकॉर्ड से जुड़ी माँगें उन्हें बेहतर कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं।

युवा मतदाताओं का व्यवहार इस बदलाव का मूल तत्व है। बिहार भारत की सबसे युवा जनसांख्यिकीय आबादी वाले राज्यों में से एक है और 2000 के बाद जन्म लिए लाखों नागरिकों ने इस चुनाव में मतदान किया है। वे ऐसे भारत में पले-बढ़े हैं जहाँ एक्सप्रेसवे, डिजिटल भुगतान, प्रतिस्पर्धी संघवाद और महत्वाकांक्षी कल्याणकारी योजनाएँ अपेक्षाओं को आकार देती हैं। वे राज्यों की तुलना करते हैं, घोषणाओं पर नज़र रखते हैं और नेताओं का मूल्यांकन इस आधार पर करते हैं कि वादे कितनी तेज़ी से कार्यान्वित होते हैं। उनके लिए, समय पर बनी सड़क और कभी फ़ाइल से बाहर न आने वाली सड़क के बीच का अंतर समझना कोई कठिन बात नहीं है। वे हर दिन उस अंतर का अनुभव करते हैं जब वे कॉलेजों, कोचिंग सेंटर या कार्यस्थलों पर आते-जाते हैं, या जब वे अपने परिवारों को परिवहन संपर्क-सुविधा और कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित होते देखते हैं।

यह पीढ़ी राष्ट्रीय एकजुटता के लिए भी एक तीव्र प्रवृत्ति रखती है। युवा मतदाता ऐसी बयानबाजी के प्रति सतर्क रहते हैं, जो संस्थानों को कमज़ोर करती हैं, अलगाववादी भावनाओं को भड़काती हैं या राष्ट्रीय सुरक्षा को कम महत्व देती हैं। वे बेरोज़गारी और असमानता सहित नीतिगत बहसों में आलोचनात्मक रूप से शामिल होते हैं, फिर भी वे गणतंत्र को बेहतर बनाने वाली आलोचना और देश की एकजुटता के प्रति उदासीन आख्यानों के बीच एक रेखा खींचते हैं। बिहार का जनादेश इसी अंतर को प्रतिबिंबित करता है। मतदाताओं ने एक ऐसे राजनीतिक गठबंधन को अपना समर्थन दिया है, जो विकास और राष्ट्रीय उद्देश्य दोनों को असाधारण स्पष्टता के साथ व्यक्त करता है।

कानून-व्यवस्था एक अन्य व्याख्या प्रस्तुत करती है। बिहार के चुनाव कभी बूथ कब्जे और हिंसा से जुड़े होते थे। हाल के वर्षों में, और खासकर इस चुनावी दौर में, ये छवियाँ काफी हद तक धुंधली पड़ गई हैं। कड़े सुरक्षा उपायों और आर्थिक विकास के संयुक्त प्रभाव से उग्रवाद कमजोर पड़ा है। व्यापारी अब अपनी दुकानें ज़्यादा देर तक खुली रखते हैं, छात्र ज़्यादा आत्मविश्वास से यात्रा करते हैं और परिवार निश्चिंत होकर सार्वजनिक जीवन का अनुभव करता है। जिस मतदाता ने इन सुधारों को देखा है, वह अपने प्रतिनिधियों को चुनते समय इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।

इन घटनाक्रमों पर विपक्ष के कुछ हिस्सों की प्रतिक्रिया चौंकाने वाली रही है। अपने समर्थन में आई कमी के कारणों पर विचार करने के बजाय, कुछ नेता चुनाव आयोग, मतदाता सूचियों या पूरी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर ही संदेह व्यक्त कर रहे हैं। यह रवैया बिहार के मतदाताओं की बुद्धिमत्ता के साथ न्याय नहीं करता। यह इस तथ्य की भी अनदेखी करता है कि इसी संस्थागत व्यवस्था ने अन्य राज्यों में विपक्ष के पक्ष में भी नतीजे दिए हैं। मतदाता उस व्यवस्था की निंदा करने के बजाय अपनी चिंताओं के साथ अधिक गंभीर जुड़ाव की अपेक्षा करता है जिसका उसने अभी इतने उत्साह से इस्तेमाल किया है।

व्यापक राष्ट्रीय और वैश्विक संदर्भ में, बिहार का जनादेश एक उभरते हुए पैटर्न को मजबूत करता है। ऐसे समय में जब कई लोकतंत्र ध्रुवीकरण, आर्थिक कठिनाई और संस्थागत थकान से जूझ रहे हैं, भारत ने उच्च भागीदारी, स्थिर नेतृत्व तथा विकास, समावेश और राष्ट्रीय शक्ति पर केंद्रित नीति मार्ग पर आगे बढ़ना जारी रखा है। बिहार के परिणाम, इस विकास-पथ के लिए लोकतांत्रिक समर्थन की एक और परत जोड़ते हैं। राजनीतिक रूप से भारत के सबसे जागरूक राज्यों में से एक के मतदाता महसूस करते हैं कि उनकी प्रगति, 2047 तक एक विकसित और आत्मविश्वास से भरे भारत की ओर देश की बड़ी यात्रा के साथ जुड़ी हुई है।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए यह जनादेश प्रोत्साहन और निर्देश दोनों है। यह अवसंरचना, कल्याणकारी सेवा अदायगी और सुरक्षा पर जोर को मान्यता देता है, लेकिन यह तेजी से रोजगार सृजन, गहन सुधारों और निरंतर संस्थागत सुधार की उम्मीदों को भी सामने रखता है। विपक्ष के लिए, यह जनादेश रणनीति, नेतृत्व और कार्यक्रम के बारे में गंभीर सवाल खड़े करता है। बिहार के मतदाताओं ने संकेत दिया है कि वे शासन, गंभीरता और राष्ट्रीय एकता के प्रति सम्मान पर आधारित राजनीति की उम्मीद करते हैं। ये उम्मीदें आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति का परिदृश्य तय करेंगी।

(लेखक: हरदीप सिंह पुरी, भारत के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हैं)



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